अरे भावड्या क्या बताऊँ,
कितना लुटा हैं जमानेने मुझे।
कुछ अपनों ने लुटा हैं,
कुछ गैरोंने लुटा हैं।
रिश्ते नाते के चक्कर में,
सब कुछ फटा हैं।
खून के रिश्ते सिलाते-सिलाते,
खून-पसीने की कमाई,
पानी जैसे बहाई हैं।
क्या कहे बेगाने दुश्मन को,
अपने तो दुश्मन से सवाई हैं।
अरे भावड्या अब तू बता,
मेहनत की कमाई से,
कुछ भी बचता नहीं।
बिना मेहनत के तो,
कुछ मिलता ही नहीं।
आखिर कमाऊँ तो कैसे कमाऊँ।
अप्राइजल की आस लगाऊँ तो,
रेटिंग्स के नियम बदल जाते हैं।
शेअर मार्केट मे पैसे लगाऊँ,
तो शेअर्स गिर जाते हैं|
ड्रीम इलेव्हन मे पैसे लगाऊँ,
तो प्लेअर्स बदल जाते हैं|
और अगर डर्बी मे पैसे लगाऊँ,
तो घोडे गधे बन जातें हैं|
कितना लुटा हैं जमानेने मुझे।
कुछ अपनों ने लुटा हैं,
कुछ गैरोंने लुटा हैं।
रिश्ते नाते के चक्कर में,
सब कुछ फटा हैं।
खून के रिश्ते सिलाते-सिलाते,
खून-पसीने की कमाई,
पानी जैसे बहाई हैं।
क्या कहे बेगाने दुश्मन को,
अपने तो दुश्मन से सवाई हैं।
अरे भावड्या अब तू बता,
मेहनत की कमाई से,
कुछ भी बचता नहीं।
बिना मेहनत के तो,
कुछ मिलता ही नहीं।
आखिर कमाऊँ तो कैसे कमाऊँ।
अप्राइजल की आस लगाऊँ तो,
रेटिंग्स के नियम बदल जाते हैं।
शेअर मार्केट मे पैसे लगाऊँ,
तो शेअर्स गिर जाते हैं|
ड्रीम इलेव्हन मे पैसे लगाऊँ,
तो प्लेअर्स बदल जाते हैं|
और अगर डर्बी मे पैसे लगाऊँ,
तो घोडे गधे बन जातें हैं|
- संतोबा
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